शनिवार 22 जुमादा-1 1446 - 23 नवंबर 2024
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उसके पास ज़कातुल-फ़ित्र से संबंधित कई प्रश्न हैं

प्रश्न

मैं शादीशुदा हूँ, मेरे एक बच्चा है और मेरी पत्नी गर्भवती है। मेरी माँ का निधन हो चुका है और मेरे पिता की कोई आय नहीं है।

मैं निम्नलिखित सवालों के उत्तर पाने की आशा करता हूँ :

1- ज़कातुल-फ़ित्र की राशि (मात्रा) जो मुझे अदा करनी होगी। ज्ञात रहे कि मेरे पास बैंक में लगभग 1500 दीनार हैं।

2- क्या मुझे उन सभी चीज़ों की ज़कातुल-फ़ित्र निकालनी चाहिए जो मेरे पास हैं, जैसे कि मेरी निजी कार, मेरे घर का फ़र्नीचर और मेरी पत्नी का निजी सोना, इसके अलावा मेरे पिता ने मेरे भाइयों से कहा है कि वह मेरे नाम पर एक फ्लैट के आधे हिस्से का स्वामित्व दर्ज कराना चाहते हैं।

3- मुझे किसकी ओर से ज़कातुल-फ़ित्र देना चाहि, और क्या मुझे अपने पिता की ओर से भी इसका भुगतान करना चाहिएॽ

4- ज़कातुल-फ़ित्र किसको दिया जाना चाहिएॽ क्या मैं इसे किसी दूसरे देश में अपने परिवार को दे सकता हूँ जहाँ उनकी स्थितियां कठिन हैंॽ

5- क्या यह संभव है कि ज़कात नक़दी के अलावा हो, और मैं इसे ज़बीहा के साथ बदल लूँ जिसे उनके बीच वितरित कर दिया जाएॽ

6- क्या मैं इसे ईद से दो हफ्ते पहले दे सकता हूँ, ताकि यह उनके लिए मददगार होॽ

7- उसकी मात्रा कितनी हैॽ

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

सबसे पहले आपको यह समझना चाहिए किः “धन के ज़कात” के बीच और उस “ज़कातुल-फ़ित्र” के बीच अंतर है जो रमज़ान के अंत में दिया जाता है। चुनांचे “ज़कातुल-फ़ित्र” हर उस मुसलमान के लिए अनिवार्य है जो खुद पर खर्च करने के लिए बाध्य है, जब उसके पास ईद के दिन और उसकी रात के लिए अपने और अपने आश्रितों की जीविका सेः एक “साअ” बाक़ी बच जाए।

अतः ज़कातुल-फ़ित्र के अनिवार्य होने के लिएः धन की कोई विशिष्ट न्यूनतम सीमा का निर्धारण नहीं है और न ही उस पर पूरा एक साल बीतने की शर्त है, और न ही कोई अन्य शर्त जो धन के ज़कात पर लागू होती है।

इसी तरह इसका उस से भी कोई संबंध नहीं है जिसका आदमी मालिक होता है जैसे धन, या रियल एस्टेट, या गाड़ियाँ; क्योंकि आदमी ज़कातुल-फ़ित्र को अपनी ओर से और उन लोगों की ओर से निकालता है, जिन पर वह खर्च करने के लिए बाध्य होता है।

तथा प्रश्न संख्याः (12459) और (49632) के उत्तर देखें।

दूसरा :

ऐसी स्थिति में : आप पर - आपके प्रश्न में जो उल्लेख किया गया है, उसके अनुसार - अपनी ओर से, अपनी पत्नी की ओर से, अपने बच्चे की ओर से और अपने पिता की ओर से भी ज़कातुल-फ़ित्र निकालना अनिवार्य है, यदि उनके पास पर्याप्त धन नहीं है, जैसा कि आपने अपने प्रश्न में कहा है।

जहाँ तक भ्रूण का संबंध हैः तो सर्वसहमति के अनुसार उसमें ज़कातुल-फ़ित्र अनिवार्य नहीं है। लेकिन यदि उसकी ओर से ज़कात निकाल दिया जाता है, तो कोई बात नहीं है।

तथा ज़कातुल-फ़ित्र के बारे में विस्तृत जानकारी प्रश्न संख्याः (146240) और (124965) के उत्तर में देखें।

तीसरा:

ज़कातुल-फ़ित्र के बारे में अनिवार्य यह है किः उसे शहर के सामान्य प्रधान भोजन से दिया जाए।

शैख अब्दुल अज़ीज़ इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह ने कहा:

“सहीहैन (यानी सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम) में अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहाः हम इसे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समय में एक साअ खाना (खाद्य पदार्थ), या एक साअ खजूर, या एक साअ जौ, या एक साअ किशमिश दिया करते थे।”

विद्वानों के एक समूह ने इस हदीस में खाना (खाद्य पदार्थ) की व्याख्या “गेहूँ” से की है, और दूसरे लोगों ने यह व्याख्या की है कि खाना से अभिप्राय वह चीज़ है जो शहर वालों की आम खूराक (प्रधान भोजन) है, चाहे वह गेहूँ हो, या मक्का, या बाजरा, या इनके अतिरिक्त कोई अन्य अनाज हो। यही सही दृष्टिकोण है; क्योंकि ज़कात का उद्देश्य मालदारों की ओर से निर्धनों और गरीबों की खबरगीरी (सहानुभूति) है, और मुसलमान पर यह ज़रूरी नहीं है कि वह अपने शहर के प्रधान खूराक (भोजन) को छोड़कर किसी अन्य चीज़ के द्वारा सहानुभूति करे।”

इसी को शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्यह रहिमहुल्लाह ने चयन किया है, और इसी के पक्षधर शैख इब्ने उसैमीन और अन्य लोग भी हैं।

इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि ज़कातुल-फ़ित्र को नियमित भोजन (आम खूराक) से दिया जाएगा, न कि नक़दी से जैसाकि प्रश्न में उल्लेख किया गया है, और न ही नक़दी के किसी अन्य विकल्प से।

इसी तरह ज़कात देनेवाले को यह भी अधिकार नहीं है किः वह अपनी ज़कात में इच्छानुसार व्यवहार करे, चाहे वह ज़कातुल-फ़ित्र हो या धन की ज़कात हो, और ग़रीबों के लिए उन्हें ज़कात देने के बजाय कुछ और खरीदकर दे, जैसे कि उनके लिए उससे मांस, या वस्त्र, या कोई और सामान खरीदकर देना।

तथा प्रश्न संख्याः (22888) और (66293) का उत्तर देखें।

चौथा:

आपके लिए अपने धन की ज़कात को, या अपने ज़कातुल-फ़ित्र को अपने देश में स्थानांतरित करने और वहां अपने परिवार को देने में कोई आपत्ति की बात नहीं है, यदि उन्हें इसकी ज़रूरत है। तथा ऐसा करना उन बहुत से श्रमिकों के मामले में सुनिश्चित हो जाता है जो किसी ऐसे देश में काम करते हैं, जहाँ के ज्यादातर लोग संपन्न और धनवान हैं, जबकि उनके देश के लोग जरूरतमंद या गरीब हैं, खासकर जब उनमें से बहुत से लोग अपने देश के गरीबों के बारे में उस देश में ज़कात के हकदार लोगों की तुलना में अधिक जानते हैं जहाँ वे काम करते हैं।

तथा यह उस समय भी सुनिश्चित हो जाता हैः जब वह उसे उस देश से स्थानांतरित करके जहां वह काम कर रहा है, उसे अपने देश में अपने गरीब रिश्तेदारों को देनेवाला हो।

तथा प्रश्न संख्याः (81122) और (43146) का उत्तर देखें।

पांचवाँ :

ज़कातुल-फ़ित्र रमज़ान के अंतिम दिन के सूरज के अस्त होने पर अनिवार्य होती है, और उसे ईद की नमाज़ से पहले अदा करना ज़रूरी है। तथा अगर जरूरत पड़े, तो उसे दो या तीन दिन पहले निकालना जायज़ है।

इसके आधार पर, उसे ईद से एक या दो सप्ताह पहले निकालना जायज़ नहीं है।

लेकिन अगर आपको डर है कि ज़कातुल-फ़ित्र का धन ईद के समय तक पहुँचने में विलंब हो जाएगा, तो आप उसे ईद से पर्याप्त समय पहले भेज सकते हैं, भले ही वह रमज़ान से पहले हो। और आप किसी भरोसेमंद आदमी को नियुक्त कर सकते हैं जो उससे आपके लिए आपकी ज़कातुल-फ़ित्र खरीद ले, लेकिन वह उसे उसके निर्धारित समय ही पर निकालेगा।

तथा प्रश्न संख्याः (81164), (27016) और (7175) के उत्तर भी देखें।

जहाँ तक धन की ज़कात का संबंध हैः तो जैसा कि ऊपर कहा गया है, इसका रमज़ान या किसी अन्य महीने से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि जब धन निसाब (ज़कात अनिवार्य होने की न्यूनतम सीमा) तक पहुँच जाए और उसपर एक पूर्ण हिजरी वर्ष बीत जाए, तो उस पर ज़कात देना अनिवार्य हो जाता है।

यदि एक वर्ष पूरा होने में एक महीने या उससे अधिक या कम समय बचा है, और कोई व्यक्ति अपनी ज़कात को पहले निकालना चाहता है, तो उसके लिए अपने धन की ज़कात को समय से पहले देना जायज़ है, यदि ऐसा करने की कोई आवश्यकता है।

इसके बारे में विस्तृत जानकारी प्रश्न संख्याः (98528) के उत्तर में देखें।

ज़कातुल-फ़ित्र और धन की ज़कात के बीच अंतर का उल्लेख प्रश्न संख्याः (145558) में किया जा चुका है।

छठवां :

नक़दी में ज़कात अनिवार्य होने के लिए दो शर्तें हैं :

पहलीः धन का निसाब (न्यूनतम सीमा) तक पहुँचना।

दूसरीः उस निसाब पर एक पूर्ण (हिजरी) वर्ष का बीतना।

यदि धन निसाब से कम है, तो उस पर ज़कात अनिवार्य नहीं है।

यदि कोई धन निसाब तक पहुँच गया है और उस पर साल ग़ुज़र गया है अर्थात उसके निसाब तक पहुँचने के समय के बाद एक पूर्ण चंद्र (हिजरी) वर्ष बीत गया है, तो उस समय ज़कात अनिवार्य हो जाती है।

नक़दी का निसाब यह है कि वह 85 ग्राम सोने या 595 ग्राम चांदी के बराबर हो।

ज़कात में जो मात्रा निकालना अनिवार्य है वह धन का चालीसवाँ हिस्सा (2.5%) है।

अधिक जानकारी के लिए प्रश्न संख्याः (50801), (93251) के उत्तर देखें।

जहाँ तक आपकी कार का संबंध है, जो व्यक्तिगत उपयोग के लिए है, और इसी तरह आपका घर जो आपके निवास के लिए हैः तो उन दोनों में से किसी पर भी ज़कात नहीं है।

प्रश्न संख्याः (146692) का उत्तर देखें।

आपके पिता पर अपनी संपत्ति से आपके नाम पर कुछ भी लिखने में कोई आपत्ति नहीं है; सिवाय इसके कि उनके पास आपके अलावा और भी बच्चे हों। ऐसी स्थिति में उनके लिए अन्य बच्चों को छोड़कर केवल आपको कुछ देना जायज़ नहीं है। बल्कि उन पर अनिवार्य है कि वह उपहार देने में उनके बीच न्याय से काम लें (अर्थात सभी के साथ समान व्यवहार करें)।

लेकिन अगर आपके बाकी भाई, बिना शर्म किए और बिन मजबूर किए गए, उस चीज़ से सहमत हैं जो आपके पिता आपके नाम पर लिखना चाहते हैं : तो उनके लिए आपके नाम पर उस चीज़ को लिखना जायज़ है जिससे वे लोग खुश-खुशी सहमत हैं।

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर