शुक्रवार 21 जुमादा-1 1446 - 22 नवंबर 2024
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तलाक़शुदा महिला के पति की सहमति से वैवाहिक घर के अलावा में इद्दत बिताने का हुक्म, और क्या अगर वह तलाक़ से पहले घर से निकल गई थी तो उसे इद्दत के लिए वापस आना होगाॽ

प्रश्न

पति-पत्नी के बीच आपसी सहमति से तलाक़ हुआ, तो क्या पत्नी अपने बेटे के घर में इद्दत (प्रतीक्षा अवधि) गुज़ार सकती हैॽ ज्ञात रहे कि महिला मासिक धर्म से निराश हो चुकी है; क्योंकि वह बूढ़ी है। दरअसल, वह एक लंबे समय से अपने पति के घर में नहीं रहती है। बल्कि वह अपने बेटे के पास रहती है वह जहाँ भी जाए। 

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम : 

पति की अनुमति से रजई तलाक़ की इद्दत बिताने वाली महिला का वैवाहिक घर से स्थानांतरित होने का हुक्म 

रजई तलाक की इद्दत बिताने वाली महिला के लिए वैवाहिक घर में रहना अनिवार्य है। अतः उसके लिए उससे बाहर जाना जायज़ नहीं है, और न ही उसके पति के लिए उसे उससे बाहर निकालना जायज़ है। तलाक़ के बाद उन दोनों की सहमति का या पति के उसको स्थानांतरित होने की अनुमति देने का कोई ऐतिबार (मान्यता) नहीं है। क्योंकि आवास में रहना सर्वशक्तिमान अल्लाह का अधिकार है। 

उन्होंने “बदाए-उस् सनाए’” (3/205) में कहा : “सर्वशक्तिमान अल्लाह का कथन :  أَسْكِنُوهُنَّ مِنْ حَيْثُ سَكَنْتُمْ  “उन्हें वहाँ आवास दो, जहाँ तुम (स्वयं) रहते हो।” आवास देने के आदेश का मतलब उन्हें बाहर निकालने और उनके (स्वयं) बाहर निकलने से मना करना है। तथा इसलिए कि वह रजई तलाक़ के बाद उसकी पत्नी ही है, क्योंकि शादी का स्वामित्व प्रत्येक रूप से क़ायम है; चुनाँचे उसके लिए बाहर निकलना जायज़ नहीं है जैसा कि तलाक़ से पहले था, सिवाय इसके कि तलाक के बाद उसके लिए बाहर जाने की अनुमति नहीं है, भले ही पति ने उसे बाहर निकलने की अनुमति दी हो। इसका मामला तलाक़ से पूर्व की स्थिति के विपरीत है। क्योंकि तलाक़ के बाद बाहर जाने का निषेध इद्दत के कारण है, और इद्दत में अल्लाह का हक़ (अधिकार) है। अतः वह (पति) उसे निरस्त करने का अधिकार नहीं रखता है। जबकि तलाक़ से पहले का मामला इसके विपरीत है; क्योंकि वहाँ पर निषेध विशेष रूप से पति के अधिकार के लिए है। इसलिए ऐसी स्थिति में वह बाहर निकलने की अनुमति देकर अपने अधिकार को निरस्त कर सकता है।” उद्धरण समाप्त हुआ। 

उन्होंने “अल-फ़वाकिह अद्-दवानी” (2/98) में कहा : “इद्दत बिताने वाली महिला का अपने उस घर से जिसमें वह अपनी इद्दत से पहले रहती थी बाहर जाना जायज़ नहीं है - अर्थात हराम है - , बल्कि अगर उसने मृत्यु या तलाक़ से पहले उसे स्थानांतरित कर दिया था, और वह स्थानांतरित करने का आरोपी पाया गया : तो उस महिला पर वापस लौटना अनिवार्य है। या वह मृत्यु या तलाक़ से पहले किसी और के साथ थी... 

ख़लील ने कहा : वह वहीं पर रहेगी जहाँ वह रह ही थी, और यदि उसने उसे स्थानांतरित कर दिया था और उसपर इसका आरोप लगाया गया, तो वह उसके पास लौट आएगी, या वह किसी और के साथ थी।” उद्धरण समाप्त हुआ। 

“हाशियह क़लयूबी व उमैरह” (4/56) में है : "(वह उस घर में रहेगी जहाँ वह जुदाई के समय थी। पति के लिए और उसके अलावा किसी अन्य के लिए उसे निकालना जायज़ नहीं है, और न ही उसके लिए (खुद) उससे बाहर निकलना जायज़ है)। यदि वह बिना किसी आवश्यकता के पति के साथ दूसरे के पास जाने का समझौता कर लेती है : तो यह अनुमेय नहीं है, और शासक को चाहिए कि इससे मना कर दे। क्योंकि इद्दत में अल्लाह का अधिकार है, और उसने इस संबंध में आवास अनिवार्य किया है। अल्लाह तआला ने फरमाया :  لَا تُخْرِجُوهُنَّ مِنْ بُيُوتِهِنَّ وَلَا يَخْرُجْنَ  “तुम उन्हें उनके घरों से न निकालो और न वे स्वयं निकलें।” (सूरतुत-तलाक़ : 1) उनकी ओर घर की निस्बत इस एतिबार से की गई है कि वह उनका आवास है। अन्-निहायह में है : रजई तलाक़ वाली महिला इस संबंध में अन्य महिलाओं की तरह हैं।" उद्धरण समाप्त हुआ। 

"शर्ह मुंतहल इरादात” (3/206) में आया है : "रजई तलाक़ वाली महिला - अपने तलाक़ देने वाले के घर को लाज़िम पकड़ने में, सोग मनाने में नहीं - : उस महिला के समान है, जिसके पति की मृत्यु हो गई, इमाम अहमद ने यह बात स्पष्टता के साथ कही है; क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है : 

 لَا تُخْرِجُوهُنَّ مِنْ بُيُوتِهِنَّ وَلَا يَخْرُجْنَ   سورة الطلاق : 1 

“तुम उन्हें उनके घरों से न निकालो और न वे स्वयं निकलें।” (सूरतुत-तलाक़ : 1], चाहे तलाक़ देने वाले ने उसे बाहर जाने की अनुमति दी हो या नहीं; क्योंकि यह इद्दत के अधिकारों मे से है, जो कि सर्वशक्तिमान अल्लाह का अधिकार है। इसलिए पति उसके अधिकारों में से कुछ भी समाप्त करने का मालिक नहीं है, जिस तरह कि वह इद्दत को समाप्त करने का अधिकार नहीं रखता।” उद्धरण समाप्त हुआ।  

दूसरा : 

रजई तलाकशुदा महिला का तलाक़ से पहले दूसरे घर में स्थानांतरित होना 

अगर पत्नी तलाक़ से पहले दूसरे घर में रहने के लिए गई थी - सिर्फ मिलने के लिए नहीं -, तो यदि वह पति की अनुमति से था : तो वह अपनी इद्दत उसी (घर) में बिताएगी।

अगर वह पति की अनुमति से नहीं गई थी : तो वह वैवाहिक घर में लौट आएगी। शाफेइय्यह के अनुसार : परंतु यह कि वह (पति) तलाक़ होने के बाद उसे अनुमति दे दे, तो वह ऐसे ही है मानो उसने उसे शुरू ही से स्थानांतरित होने की अनुमति दी हो।

इमाम शाफेई रहिमहुल्लाह ने “अल-उम्म” (5/243) में कहा : (उन्होंने कहा) : यदि वह उसे अपने उस घर के अलावा, जिसमें वह उसके संग रहती थी, किसी अन्य घर में स्थानांतरित कर दे, फिर उसके उस घर में रहने के बाद जिसमें उसने उसे स्थानांतरित किया था, उसे तलाक़ दे दे या उसे छोड़कर मर जाए : तो वह उसी घर में इद्दत गुज़ारेगी, जिसमें उसने उसे स्थानांतरित किया है, या उसने उसे उस घर में स्थानांतरित होने की अनुमति प्रदान की है...

(उन्होंने कहा) : चाहे उसने उसे किसी विशेष घर में अनुमति दी हो या उसने उससे कहा हो : तुम जहाँ चाहो, स्थानांतरित हो जाओ। या वह उसकी अनुमति के बिना स्थानांतरित हो गई, तो उसने उसे उसके बाद उस घर में रहने की अनुमति दे दी; यह सब उसके उस घर में इद्दत बिताने के संबंध में बराबर (समान) है।

(उन्होंने कहा) : यदि वह उसकी अनुमति के बिना स्थानांतरित हो गई, फिर उसने उसे अनुमति नहीं दी यहाँ तक कि उसने उसे तलाक़ दे दी या उसे छोड़कर मर गया : तो वह वापस आएगी और अपने उस घर में इद्दत बिताएगी जिसमें वह उसके साथ रहती थी।” उद्धरण समाप्त हुआ।

उन्होंने “तुहफ़तुल-मुहताज” (8/264) में कहा : “हाँ, अगर पति ने उसे उसके वहाँ पहुँचने के बाद वहाँ रहने की अनुमति दे दी, तो यह उसकी अनुमति के साथ स्थानांतरित होने की तरह है।”

तथा उसपर शिरवानी के हाशिया में है : “अर-रौज़ और उसकी शर्ह (व्याख्या) के शब्द दूसरे घर में स्थानांतरित होने से तलाक़ और मृत्यु में देरी का और उन दोनों से अनुमति में देरी का एतिबार करने में स्पष्ट हैं।” (उनका कथन : उसकी अनुमति के साथ स्थानांतरित होने की तरह है।) अर्थात् वह अनिवार्य रूप से दूसरे (घर) में इद्दत बिताएगी।” उद्धरण समाप्त हुआ।

इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने कहा : “यदि पति ने उसे दूसरे घर में या किसी अन्य देश में स्थानांतरित होने की अनुमति दे दी, फिर वह उसके स्थानांतरित होने से पहले मर गया, तो उसके लिए उसी घर में इद्दत बिताना अनिवार्य है जिसमें वह है; क्योंकि यह उसका घर है, और चाहे उसकी मृत्यु उसके अपने सामान को स्थानांतरित करने से पहले हुई हो या उसके बाद; क्योंकि यह उसका निवास है, जब तक कि वह उससे स्थानांतरित न हो जाए।” “अल-मुग़्नी” (8/169) से उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा देखें : “अल-इंसाफ” (9/309)।

इसके आधार पर ; यदि वह महिला जिसके संबंध में प्रश्न पूछा गया है, तलाक़ से पहले अपने पति की अनुमति से अपने बेटे के घर स्थानांतरित हो गई थी, वह अनिवार्य रूप से अपने बेटे के घर में इद्दत बिताएगी।

यदि यह उसके पति की अनुमति के बिना था, तो उसके लिए अनिवार्य है कि वह वैवाहिक घर में लौट आए और उसमें इद्दत बिताए। सिवाय इसके कि पति उसे अपने बेटे के उस घर में इद्दत बिताने की अनुमति प्रदान कर दे, जिसमें वह उसकी अनुमति के बिना स्थानांतरित हो गई है।

वह तीन महीने इद्दत गुज़ारेगी; क्योंकि मासिक धर्म से निराश महिला की इद्दत तीन महीने है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर