हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
आप ने इस संदेश को प्रकाशित न कर बहुत अच्छा काम किया है, जो कई ऐसी वेबसाइटों पर प्रचलित है जिन पर अज्ञानता और जनसाधारण चरित्र का प्रभुत्व है।
जिन लोगों ने इस संदेश को प्रकाशित किया है और मुसलमानों से प्रार्थना (नमाज़) और ज़िक्र (जप) करने की अपेक्षा किया हैः हमें इस पर कोई शक नहीं कि उनके इरादे अच्छे और महान हैं, विशेष रूप से जब उन लोगों का इरादा यह है कि पाप और अवज्ञा किए जाने के समय अल्लाह की आज्ञाकारिता और पूजा के कृत्य किए जाएँ। लेकिन यह अच्छा और नेक इरादा उस कार्य को वैध, धर्मसंगत और स्वीकार्य नहीं बना सकता। बल्कि उस कार्य का अपने कारण, प्रकार, मात्रा, तरीक़ा, समय और स्थान के संदर्भ में शरीअत के अनुसार होना आवश्यक है। इन छह श्रेणियों का विस्तृत वर्णन प्रश्न संख्याः (21519) के उत्तर में देखें। इस तरीक़े के द्वारा एक मुसलमान वैध और अवैध कार्यों के बीच अंतर कर सकता है।
इस संदेश के प्रकाशन को प्रतिबंधित करने के कारणों को कुछ बिंदुओं में सीमित किया जा सकता है, जिनमें से कुछ यह हैं :
1-पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समय काल से लेकर हमारे इस वर्तमान समय तक, अज्ञानता के समय काल के कई विशेष अवसर, तथा काफिरों और पथभ्रष्टों के कई अवसर पाए गए, लेकिन हमने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर से कोई ऐसा पाठ (प्रमाण) नहीं देखा है, जो दूसरों के अवज्ञा (पाप) करने के समय हमें आज्ञाकारिता (पूजा कृत्य) करने, तथा कोई विधर्मिक काम करने के समय, धर्मसंगत कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता हो। इसी तरह प्रसिद्ध इमामों में से किसी का कोई ऐसा कथन वर्णित नहीं है जो इस काम की सिफारिश करता हो।
यह तो पाप का उपचार एक विधर्म (नवाचार) के माध्यम से करने के शीर्षक के अंतर्गत आता है, जिस तरह कि राफिज़ियों (शीयों) के द्वारा आशूरा के अवसर पर शोक प्रकट करने और थप्पड़ मारने की बिद्अत का उपचार, परिवार पर खर्च करने में विस्तार से काम लेने तथा हर्ष और खुशी प्रकट करने की बिदअत के द्वारा किया गया।
शैख़ुल इस्लाम इब्न तैमिय्या (अल्लाह उन पर दया करे) फरमाते हैं :
रही बात आपदाओं के दिनों को शोक का अवसर बनाने कीः तो यह मुसलमानों के धर्म का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह जाहिलियत के धर्म के अधिक क़रीब है। फिर इस प्रकार उन्होंने इस दिन के रोज़े की जो विशेषता है उसे भी नष्ट कर दिया। तथा कुछ लोगों ने मनगढ़ंत व आधारहीन हदीसों को बुनियाद बनाकर इसमें कुछ चीज़ें अविष्कार कर ली हैं जैसे इसमें स्नान करना, सुरमा लगाना और मुसाफहा करना (हाथ मिलाना)। ये और इसी तरह की अन्य विधर्मिक बातें सबकी सब मक्रूह (अनेच्छिक) हैं, बल्कि मुस्तहब (वांछनीय) केवल उसका रोज़ा रखना है। इस दिन अपने बच्चों पर उदारता से खर्च करने के बारे में कुछ परिचित आसार (उद्धरण) वर्णित हैं जिनमें सर्वोच्च इब्राहीम बिन मुहम्मद बिन अल-मुंतशिर की हदीस है जिसे उन्हों ने अपने बाप से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहाः हमें यह बात पहुँची है कि जिस व्यक्ति ने आशूरा के दिन अपने परिवार पर खर्च करने में विस्तार से काम लिया तो अल्लाह तआला उस पर पूरे साल विस्तार करेगा।'' इसे इब्न उयैना ने रिवायत किया है, लेकिन यह संचरण विच्छिन्न है इसका वाचक अज्ञात है। सबसे अधिक संभावित बात यह है कि इसे उस समय निर्मित किया गया है जब नासिबियों और राफिज़ियों के बीच पक्षपात का प्रकटन हुआ। क्योंकि इन लोगों ने आशूरा के दिन को मातम अर्थात शोक के दिन के रूप में मानायाः तो उन लोगों ने इसके बारे में ऐसे आसार (उद्धरण) गढ़ लिए जो इस दिन उदारता से खर्च करने और इसे एक ईद (पर्व) बना लेने की अपेक्षा करते हैं, हालांकि ये दोनों ही विचार असत्य (झूठे) हैं...
लेकिन तथ्य यह है कि किसी को भी यह अनुमति नहीं है कि किसी की खातिर इस्लामी शरीअत (कानून) में कुछ भी परिवर्तन करे। आशूरा के दिन खुशी और हर्ष का प्रदर्शन करना तथा इस दिन उदारता से खर्च करना अविष्कारित नवाचारों में से है, जो राफिज़ियों के खिलाफ एक प्रतिक्रिया के रूप में प्रकट हुई हैं, ...
''इक़्तिज़ाउस्सिरातिल मुस्तक़ीम'' (पृष्ठ 300, 301).
तथा हमने शैख़ुल इस्लाम इब्न तैमिय्या के एक अन्य बहुमूल्य कथन का उल्लेख किया है जिसे आप प्रश्न संख्याः (4033) के जवाब में देख सकते हैं।
2-इस्लाम शरीअत में दुआ (प्रार्थना) और नमाज़ के कुछ विशेषता वाले समय हैं, जिनमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें उन कृत्यों के करने के लिए प्रोत्साहित किया है, जैसे रात का अंतिम तीसरा भाग, जो अल्लाह सर्वशक्तिमान के निचले आकाश पर उतरने का समय है। और लोगों को उन कार्यों को एक ऐसे समय पर करने के लिए प्रोत्साहित करना जिसके विषय में कोई सही पाठ (प्रमाण) वर्णित नहीं है, यह वास्तव में ''कारण'' और ''समय'' के विषय में क़ानून साज़ी (विधान रचना) है, और इन दोनों में से किसी एक के संबंध में भी शरीअत की अवहेलना करना उस कार्रवाई को एक निन्दात्मक नवाचार ठहराने के लिए पर्याप्त है, तो फिर उन दोनों में अवहेलना की अवस्था में क्या हुक्म होगाॽ. !
प्रश्न संख्या (8375) के जवाब में : हमसे ग्रेगोरियन नव वर्ष दिवस के अवसर पर गरीब परिवारों के लिए दान देने के बारे में पूछा गया, तो हम ने यह उत्तर दिया कि इसकी अनुमति नहीं है। हमने वहाँ जो कुछ कहा था वह निम्नलिखित हैः
हम मुसलमान लोग यदि सदक़ा (दान) करना चाहें : तो हम उसे उसके सही हक़दारों को देंगे। हम जानबूझकर उसे काफिरों के त्योहारों में नहीं खर्च करेंगे। बल्कि जब भी आवश्यकता पड़ेगी हम उसे निकालेंगे, और भलाई के महान अवसरों का लाभ उठायेंगे, जैसे कि रमज़ान का महीना, ज़ुल-हिज्जा के प्रथम दस दिन और इनके अलावा अन्य प्रतिष्ठित अवसर।
संपन्न हुआ।
एक मुसलमान के लिए बुनियादी सिद्धांत अनुपालन व अनुसरण करना है, नवाचारों का अविष्कार करना नहीं है। अल्लाह तआला फरमाता हैः
( قُلْ إِنْ كُنْتُمْ تُحِبُّونَ اللَّهَ فَاتَّبِعُونِي يُحْبِبْكُمُ اللَّهُ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَاللَّهُ غَفُورٌ رَحِيمٌ . قُلْ أَطِيعُوا اللَّهَ وَالرَّسُولَ فَإِنْ تَوَلَّوْا فَإِنَّ اللَّهَ لا يُحِبُّ الْكَافِرِينَ ) [سورة آل عمران : 31-32].
"कह दीजिए, ''अगर तुम अल्लाह तआला से महब्बत रखते हो तो मेरी पैरवी (अनुसरण) करो, स्वयं अल्लाह तआला तुम से महब्बत करेगा और तुम्हारे गुनाह माफ़ कर देगा और अल्लाह तआला बड़ा माफ़ करने वाला और बहुत मेहरबान (दयावान) है।'' कह दीजिए, "अल्लाह और रसूल का आज्ञापालन करो।" फिर यदि वे मुँह मोड़ें तो अल्लाह भी इनकार करनेवालों से महब्बत नहीं करता।" (सुरत-आल इम्रान : 31-32)।
इब्ने कसीर – रहिमहुल्लाह – फरमाते हैं : यह आयत हर उस व्यक्ति पर निर्णायक है जो अल्लाह से प्यार करने का दावा करता है, लेकिन वह मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मार्ग का अनुसरण नहीं करता हैः तो वह वास्तव में अपने दावे में झूठा है, यहाँ तक कि वह अपने सभी कथनों और स्थितियों में पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की शरीअत और पैगंबर के धर्म का अनुसरण करे। जैसाकि सहीह हदीस में अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि आप ने फरमायाः "जिस ने कोई ऐसा कार्य किया जो हमारे आदेश के अनुसार नहीं है तो उसे रद्द (अस्वीकृत) कर दिया जायेगा।''
''तफ्सीर इब्न कसीर'' (2/32)।
शैख़ मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह फरमाते हैं :
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से, अपने आप को प्यार करने से अधिकतर, प्यार करो। तुम्हारा ईमान (विश्वास) इसके बिना पूरा नहीं हो सकता। लेकिन आपके धर्म में कोई ऐसी चीज़ ईजाद न करो जिसका उससे संबंध नहीं है। ज्ञान के छात्रों को चाहिए कि लोगों के लिए इस बात को स्पष्ट करें और उन्हें बताएं कि : सही शरई इबादतों में व्यस्त रहो, अल्लाह को याद करो, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर हर समय दुरूद भेजो, नमाज़ स्थापित करो, ज़कात का भुगतान करोऔर मुसलमानों के साथ हर समय अच्छा और भलाई करो।
''लिक़ाआतुल बाबिल मफ्तूह'' (35/5)।
3-उन पापों और बुराइयों के प्रति आप लोगों पर जो चीज़ अनिवार्य है, उसे आप लोग छोड़ दे रहे हैं, और वह भलाई का आदेश करना, बुराई से रोकना और अवहेलना करने वालों को नसीहत करना है। तथा आप लोगों का सामूहिक पापों और बुराइयों के होते हुए व्यक्तिगत इबादतों (पूजा कृत्यों) में व्यस्त होना अच्छा नहीं है।
हमारे विचार में इस तरह की विज्ञप्तियों (संदेशों) को प्रसारित व प्रकाशित करना हराम है, और इस तरह के अवसरों पर उन आज्ञाकारिताओं (अच्छे कर्मों) का अनुपालन करना बिद्अत (नवाचार) है। तथा आप लोगों के लिए विधर्मिक या बहुदेववादी अवसरों पर हराम समारोहों और आयोजनों के खिलाफ चेतावनी देना ही पर्याप्त है। इस पर आप लोगों को पुण्य मिलेगा और उन पापों के संबंध में आप लोगों का जो कर्तव्य बनता है, वह पूरा हो जाएगा।
तथा अच्छी नीयत (नेक इरादे) के बारे में महत्वपूर्ण लाभप्रद बातों की जानकारी हेतु, तथा इस बात से अवगत होने के लिए कि अच्छी नीयत वाले के विधर्मिक कार्य को उसका नेक इरादा एक पुण्य वाला कार्य बनाने में सहायक नहीं होगाः प्रश्न संख्याः (60219) का उत्तर देखें, उसमें एक महत्वपूर्ण विस्तार है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक जानता है।