हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.
सर्व प्रथम :
उलमा रहिमहुमुल्लाह इस बात पर सहमत हैं कि शरीअत ने क़ुर्बानी के जानवरों के लिए एक उम्र निर्धारित की है जिससे कम उम्र का जानवर ज़बह करना जायज़ नहीं है। जिस व्यक्ति ने उससे कम उम्र का जानवर ज़बह किया तो उसकी क़ुर्बानी पर्याप्त नहीं होगी।
देखिएः नववी की “अल-मजमूअ” (1/176).
इस बात को दर्शाने वाली कई हदीसें वर्णित हुई हैं :
पहली हदीसः
उन्हीं में से वह हदीस है जिसे बुखारी (हदीस संख्या : 5556) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1961) ने बरा बिन आज़िब रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : मेरे मामा अबू बुर्दा रज़ियल्लाहु अन्हु ने ईद की नमाज़ से पहले ही क़ुर्बानी कर ली थी। तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "तुम्हारी बकरी केवल मांस की बकरी है।” उन्हों ने कहा : "हे अल्लाह के पैगंबर, मेरे पास एक घरेलू बकरी का जज़आ है।” एक रिवायत के अनुसार : “एक साल से कम की पठिया है।” और बुखारी की एक रिवायत (हदीस संख्या : 5563) में है किः “मेरे पास एक जज़आ है जो दो मुसिन्ना (अर्थात दो दांत वाले दो जानवरों) से बेहतर है, क्या मैं उसे ज़बह करूँॽ” आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः “उसे ज़बह कर लो, लेकिन तुम्हारे बाद यह किसी और के लिए मान्य नहीं है।” एक अन्य रिवायत के शब्द यह हैं कि : “यह तुम्हारे बाद किसी के लिए भी पर्याप्त नहीं होगा।" फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जिसने नमाज़ से पहले ज़बह किया वह अपने लिए ज़बह करता है, और जिसने नमाज़ के बाद ज़बह किया तो उसकी क़ुर्बानी पूरी हो गई और उसने मुसलमानों के तरीक़े को पा लिया।”
इस हदीस से इंगित होता है कि बकरी का जज़आ क़ुर्बानी के रूप में पर्याप्त नहीं है। जज़आ का अर्थ आगे आ रहा है।
इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने “तह्ज़ीब अस-सुनन” में फरमाया :
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथनः (यह तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ से भी कदापि पर्याप्त नहीं होगा)
यह निश्चित रूप से इस बात को नकारता है कि वह उनके बाद किसी और की तरफ़ से पर्याप्त (मान्य) होगा।” इब्नुल क़ैयिम की बात समाप्त हुई।
दूसरी हदीसः
मुस्लिम (हदीस संख्या : 1963) ने जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहाः अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "तुम मुसिन्ना जानवर ही क़ुर्बानी करो, सिवाय इस के कि तुम्हारे लिए कठिनाई हो तो भेड़ का जज़आ़ क़ुर्बानी करो।"
इस हदीस में भी स्पष्ट रूप से बयान किया गया है कि मुसिन्ना जानवर ही ज़बह करना ज़रूरी है, सिवाय भेड़ के कि उसका जज़आ ज़बह करना पर्याप्त होगा।
नववी ने “शर्ह मुस्लिम” में फरमाया :
विद्वानों का कहना है : ऊंट, गाय और भेड़-बकरी में से सनिय्या और उससे ऊपर उम्र वाले जानवर को मुसिन्ना कहा जाता है। यह इस बात को स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि भेड़ को छोड़कर किसी अन्य जानवर का जज़आ किसी भी परिस्थिति में ज़बह करना जायज़ नहीं है।” उद्धरण का अंत हुआ।
हाफिज़ इब्ने हजर ने “तल्खीसुल हबीर” (4/285) में फरमाया :
“हदीस के प्रत्यक्ष अर्थ की अपेक्षा यह है कि भेड़ का जज़आ उसी समय पर्याप्त होगा जब वह मुसिन्ना ज़बह करने में असमर्थ हो। जबकि विद्वानों की आम सहमति इसके विपरीत है। इसलिए इस हदीस की व्याख्या इस तरह की जाएगी कि उसे बेहतर के अर्थ में लिया जाएगा, और उसका मतलब यह होगा किः मुस्तहब औऱ बेहतर यह है कि वे मुसिन्ना ही ज़बह करें।” उद्धरण समाप्त हुआ।
इसी तरह की बात नववी ने “शर्ह मुस्लिम” में कही है।
तथा “औनुल माबूद” में फरमाया :
“यही व्याख्या करना निर्धारित (आवश्यक) है।” उद्धरण का अंत हुआ।
फिर उन्हों ने क़ुर्बानी में भेड़ के जज़्आ के जायज़ होने पर दलालत करने वाली कुछ हदीसों का उल्लेख किया है, उन्हीं में से उक़बा बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि उन्हों ने कहा : "हमने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ भेड़ के जज़्आ की क़ुर्बानी की।” इसे नसाई (हदीस संख्या : 4382) ने रिवायत किया है। हाफिज़ इब्ने हजर ने कहा है कि इसकी इस्नाद मज़बूत है और अल्बानी ने सहीह नसाई में इसे सही कहा है।
तथा “अल-मौसूअतुल फिक़्हिय्या” (5/83) में क़ुर्बानी की शर्तों के उल्लेख में आया है :
दूसरी शर्तः यह है कि वह जानवर क़ुर्बानी की उम्र को पहुंच चुका हो, इस प्रकार कि ऊंट, गाय और बकरी में से सनिय्या या सनिय्या से बड़ा और भेड़ में जज़्आ या जज़्आ से बड़ा हो। अतः भेड़ के अलावा में से सनिय्या से छोटे, और भेड़ में से जज़्आ से छोटे जानवर की क़ुर्बानी जायज़ नहीं है . . . इस शर्त पर फुक़हा सहमत हैं, लेकिन सनिय्या और जज़्आ के अर्थ की व्याख्या में उनके बीच मतभेद है।” उद्धरण का अंत हुआ।
इब्ने अब्दुल बर्र रहिमहुल्लाह ने कहा :
“मुझे इस विषय में किसी भी मतभेद का पता नहीं है कि बकरी में से और भेड़ के अलावा बलि दिए जाने वाले किसी भी जानवर में से जज़्आ की क़ुर्बानी जायज़ नहीं है, बल्कि इन सभी में से केवल सनिय्या और उससे बड़े आयु वाले जानवर ही की क़ुर्बानी जायज़ है। और सुन्नत के अनुसार भेड़ के जज़्आ की बलि देना अनुमत है।”
“तर्तीबुत्तम्हीद”(10/267) से उद्धरण का अंत हुआ।
नववी ने “अल-मज्मूअ” (8/366) में फरमाया :
“उम्मत की इस बात पर सर्वसहमति है कि ऊंटों, गायों और बकरियों में से सनिय्या, तथा भेड़ में से जज़्आ ही पर्याप्त होगा। और ये सभी वर्णित जानवर पर्याप्त हैं, सिवाय इसके कि हमारे कुछ साथियों ने उल्लेख किया है कि इब्ने उमर और अज़-जुहरी का कहना है कि : भेड़ का जज़्आ प्रयाप्त नहीं है। तथा अता और औज़ाई से वर्णित है कि ऊंटों, गायों, बकरियों और भेड़ों में से जज़्आ पर्याप्त होगा।” उद्धरण का अंत हुआ।
दूसरी बात :
जहां तक क़ुर्बानी के जानवर में निर्धारित रूप से आवश्यक आयु की बात है तो इसके संबंध में विद्वानों के बीच मतभेद हैः
हनफिय्या और हनाबिला के निकटः भेड़ का जज़्आ वह है जो छः महीने का हो गया हो, तथा मालिकिय्या और शाफेइय्या के निकटः भेड़ का जज़्आ वह है जो एक वर्ष का हो गया हो।
बकरी का मुसिन्ना (सनिय्या) : हनफिय्या, मालिकिय्या और हनाबिला के निकट जो एक वर्ष की आयु का हो गया हो, तथा शाफेइय्या के निकट जो दो साल की उम्र का हो गया हो।
गाय का मुसिन्नाः हनफिय्या, शाफेइय्या और हनाबिला के निकट जो दो साल की उम्र का हो गया हो, तथा मालिकिय्या के निकट जो तीन साल की उम्र का हो गया हो।
ऊंट का मुसिन्नाः हनफिय्या, मालिकिय्या, शाफेइय्या और हनाबिला के निकट जो पांच वर्ष की आयु का हो गया हो।
देखें : “बदाएउस-सनाए” (5/70), “अल-बह्र अर्-राइक़” (8/202), “अत्-ताज वल-इकलील” (4/363), “शर्ह मुख्तसर खलील” (3/34), “अल-मजमूअ” (8/365), “अल-मुग्नी” (13/368)।
शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने “अहकामुल उज़हिया” में फरमाया :
“ऊंट का सनिय्या वह हैः जो पांच साल की आयु का हो गया हो। गाय का सनिय्या वह हैः जो दो साल की आयु का हो गया हो। बकरी का सनिय्या वह हैः जो एक वर्ष की आयु का हो गया हो। जज़आः वह है जो आधे वर्ष की आयु का हो गया हो। अतः ऊंटों, गायों और बकरियों में से सनिय्या से कम आयु, तथा भेड़ में से जज़आ से कम आयु की क़ुर्बानी सही (मान्य) नहीं है।” अंत हुआ।
तथा स्थायी समिति के फतावा (11/377) में आया है :
“शरई प्रमाणों से पता चलता है कि छह महीने की उम्र का भेड़, एक वर्ष की आयु की बकरी, दो साल की उम्र की गाय और पांच साल की आयु का ऊंट क़ुर्बानी के रूप में पर्याप्त होगा। जो जानवर इससे कम आयु का होगा वह न हदी के रूप में प्रयाप्त हो गा और न ही क़ुर्बानी के रूप में काफ़ी होगा। यही वह हदी है जो उपलब्ध है, क्योंकि क़ुरआन और सुन्नत के प्रमाण एक दूसरे की व्याख्या करते हैं।” उद्धरण का अंत हुआ।
कासानी ने “बदाएउस-सनाए” (5/70) में कहा :
“और इन उम्रों को उन चीज़ों के साथ अनुमानित करना जो हमने कहा है, कमी को रोकने के लिए है, वृद्धि को रोकने के लिए नहीं है; यहां तक कि यदि किसी ने उससे कम आयु के जानवर की क़ुर्बानी की तो वह जायज़ नहीं होगा, और अगर उससे अधिक आयु के जानवर की क़ुर्बानी की तो वह जायज़ होगा और बेहतर होगा। तथा क़ुर्बानी में भेड़ का बच्चा, बकरी का बच्चा, बछड़ा और ऊंटनी का बच्चा जायज़ नहीं है, क्योंकि शरीअत में उन्हीं उम्रों (वाले जानवरों) का वर्णन हुआ है जिनका हमने उल्लेख किया है, और ये जानवर उन नामों से नहीं जाने जाते हैं।” उद्धरण का अंत हुआ।
इससे स्पष्ट हुआ कि दो साल से कम उम्र की गाय को ज़बह करना किसी भी इमाम के निकट क़ुर्बानी के रूप में पर्याप्त नहीं होगा।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान वाला है।