रविवार 21 जुमादा-2 1446 - 22 दिसंबर 2024
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तिलावत के सज्दा की विधि और उसके लिए पवित्रता

प्रश्न

क्या तिलावत का सज्दा करने के लिए पवित्रता शर्त है ? और क्या सज्दा में जाते हुये और उस से सिर उठाते हुये तक्बीर (अल्लाहु अकबर) कहें गे, चाहे नमाज़ के अंदर हो या नमाज़ के बाहर ? और इस सज्दे में क्या पढ़ा जायेगा ? और क्या इसके बारे में जो दुआ वर्णित है, वह सहीह है ? और अगर नमाज़ के बाहर हो तो क्या इस सज्दे में सलाम फेरना धर्म संगत है ?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

विद्वानों के दो कथनों में से सब से सहीह कथन के अनुसार, तिलावत के सज्दे के लिए तहारत (पवित्रता, वुज़ू) का होना शर्त नहीं है, न ही उस में सलाम फेरना है और न ही विद्वानों के दो कथनों में से सब से शुद्ध कथन के अनुसार उस से सिर उठाते समय तकबीर कहना है।

तथा सज्दा में जाते समय तकबीर कहना धर्म संगत है, क्योंकि इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा की हदीस से ऐसी बात साबित है जो इस पर तर्क (दलील) है।

लेकिन अगर तिलावत का सज्दा नमाज़ के अंदर है, तो सज्दे में जाते और उस से उठते समय तकबीर (अल्लाहु अकबर) कहना अनिवार्य है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नमाज़ के अंदर हर नीचे जाने और (ऊपर) उठने की अवस्था में ऐसा करते थे (अर्थात् तकबीर कहते थे)। और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है कि आप ने फरमाया कि : "तुम उसी तरह नमाज़ पढ़ो जिस तरह कि तुम ने मुझे नमाज़ पढ़ते हुए देखा है।" (सहीह बुखारी हदीस संख्या : 595)

तिलावत के सज्दे में वही दुआ और ज़िक्र धर्म संगत है जो नमाज़ के सज्दों में शरीअत से प्रमाणित है, क्योंकि इस बारे में वर्णित हदीसों का अर्थ सामान्य है (अर्थात् हर प्रकार के सज्दे को सम्मिलित है), उन्हीं में से एक दुआ यह भी है : "अल्लाहुम्मा लका सजद्तो, व-बिका आमन्तो, व-लका अस्लम्तो, स-जदा वज्हिया लिल्लज़ी ख़-ल-क़हू, व सव्वरहू, व शक़्क़ा सम्अ़हू व ब-स-रहू, बि-हौलिही व क़ुव्वतिही, तबारकल्लाहु अह्सनुल ख़ालेक़ीन" (ऐ अल्लाह! मैं ने तेरे ही लिये सज्दा किया, मैं तुझ पर ही ईमान लाया, और अपने आप को तुझे ही समर्पित कर दिया, मेरे चेहरे ने सज्दा किया उस अस्तित्व के लिए जिस ने उसे पैदा किया, उसका चित्र (रूप रेखा) बनाया, और अपनी शक्ति और ताक़त से उसके कान और आँख बनाये, अतः सब से श्रेष्ठ रचनाकार अल्लाह की अस्तित्व बड़ी बर्कत वाली है।) इस हदीस को इमाम मुस्लिम ने अपनी सहीह के अंदर (हदीस संख्या : 1290)अली रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया है कि आप तिलावत के सज्दे में यह दुआ पढ़ते थे।

तथा अभी अभी पीछे गुज़र चुका है कि तिलावत के सज्दे में वही दुआयें पढ़ना धर्म संगत हैं जो नमाज़ के सज्दे में पढ़ना मश्रूअ़ है, तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि आप ने तिलावत के सज्दे में यह दुआ पढ़ी : "अल्लाहुम्मक्तुब ली बिहा इन्दका अज्रा, वम्हु अन्नी बिहा विज़्रा, वज्अ़ल्हा ली इन्दका ज़ुख़्रा, व तक़ब्बल्हा मिन्नी कमा तक़ब्बल्तहा मिन अब्दिका दाऊदा अलैहिस्सलाम" (ऐ अल्लाह! तू मेरे लिए इस के द्वारा अपने पास अज्र व सवाब लिख दे, और इस के द्वारा मुझ से मेरे पाप को मिटा दे, और इसे अपने पास मेरे लिए कोष (ज़खीरा) बना दे, और इसे मेरी तरफ से उसी तरह स्वीकार कर ले जिस तरह कि तू ने अपने बन्दे दाऊद अलैहिस्सलाम से स्वीकार किया था।) (तिर्मिज़ी हदीस संख्या : 528).

इस में अनिवार्य : "सुब्हाना रब्बियल आला" कहना है, जैसाकि नमाज़ के सज्दे में अनिवार्य है। और जो ज़िक्र और दुआ इस से बढ़ कर पढ़ी जायेगी वह मुस्तहब है।

तथा तिलावत का सज्दा, चाहे नमाज़ में हो या नमाज़ के बाहर, सुन्नत है, अनिवार्य नहीं है ; क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से जै़द बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस से प्रमाणित है जो इस पर तर्क है, तथा उमर रज़ियल्लाहु से साबित है जो इस पर भी तर्क है, और अल्लाह तआला ही तौफीक़ देने वाला (शक्ति का स्रोत) है।

स्रोत: (मजमूअ़ फतावा व मक़ालात, समाहतुश्शैख इब्ने बाज 11/406)