गुरुवार 25 जुमादा-2 1446 - 26 दिसंबर 2024
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एक मुसलमान बुरे आचार से कैसे छुटकारा प्राप्त करे, तथा शिष्टाचार से कैसे सुसज्जित हो?

प्रश्न

मेरा आचार और रवैया बहुत बुरा है। मैं अपनी माँ की अवज्ञा करती हूँ और सदैव उन्हें गुस्सा दिलाती हूँ। कभी-कभी मेरा आचार और रवैया अच्छा भी होता है, परन्तु अक्सर समय बुरा ही रहता है। अतः मैं अपने आचार और रवैये को कैसे सुधार सकती हूँ? वे कौन सी चीज़ें हैं जो माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करने तथा शिष्टाचार को विकसित करने में सहयोग करती हैं? यदि मेरा आचार और रवैया बुरा है तो क्या मुझे दंडित किया जाएगा? अथवा अच्छा व्यवहार (शिष्टाचार) मात्र अच्छा है? (अर्थात ऐसा है जो केवल अच्छा है, लेकिन आवश्यक नहीं है) जब मैं अपने आचार को अच्छा बनाती हूँ तो मुझे दिखावा (रियाकारी) महसूस होता है (अर्थात् यह कि मैं दिखावा कर रही हूँ)। मुझे लगता है कि मैं आचार के बारे में छोटे शिर्क (अनेकेश्वरवाद) की दोषी हूँ। अतः मेरे लिए अच्छे व्यवहार और शिष्टाचार पर स्थिर रहना तथा उसमें अल्लाह के लिए इख़्लास़ (निष्ठा) अपनाना कैसे संभव है?

उत्तर का पाठ

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह तआला के लिए योग्य है।.

सर्व प्रथम :

क़ियामत (प्रलय) के दिन कर्मों के तराज़ू में सब से ज़्यादा भारी चीज़ शिष्टाचार होगी, तथा क़ियामत के दिन अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सबसे निकट रहनेवाला वह व्यक्ति होगा जो लोगों में सबसे अच्छे आचार वाला होगा।

जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (निःसंदेह प्रलय के दिन तुममें मेरे निकट सब से ज़्यादा प्रिय और बैठक के एतिबार से मेरे सबसे ज़्यादा क़रीब वह व्यक्ति होगा जो तुम में सबसे अधिक अच्छे आचार वाला होगा।) इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2018) ने रिवायत किया है और हसन क़रार दिया है, तथा शैख़ अल्बानी ने ''सहीह तिर्मिज़ी'' में इसे सहीह क़रार दिया है।

बुख़ारी (हदीस संख्या : 6035) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2321) नें अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : (तुममें सब से अच्छा वह व्यक्ति है जो तुममें अख़्लाक़ (आचार) में सबसे अच्छा है।)

इमाम नववी रहिमहुल्लाह कहते हैं :

“इस हदीस में शिष्टाचार पर बल दिया गया है और अच्छे अख़्लाक़ (आचार) वाले व्यक्ति की फज़ीलत (श्रेष्ठता) बयान की गई है तथा यह अल्लाह तआला के पैगंबरों और सदाचारियों की विशेषता है।

हसन बसरी रहिमहुल्लाह कहते हैं : नैतिकता की वास्तविकता यह है : भलाई करना, किसी को कष्ट न देना अच्छे स्वभाव का प्रदर्शन करना।

क़ाज़ी अयाज़ रहिमहुल्लाह कहते हैं : लोगों के साथ अच्छे व्यवहार और हंसमुखता के साथ मेल-जोल रखना, उनसे प्रेम प्रकट करना, उनपर दया करना, उनके साथ सहनशीलता और सहिष्णुता से काम लेना, अप्रिय चीजों में उन पर धैर्य से काम लेना, लोगों पर घमंड और अहंकार को छोड़ देना। तथा कठोरता, क्रोध, ग़ुस्सा और लोगों की पकड़ करने से दूर रहना।” समाप्त हुआ।

द्वितीय :

माता-पिता की नाफरमानी (अवज्ञा) करना महा पापों में से एक है, तथा उनकी अवज्ञा करने वाला व्यक्ति न तो संसार में सफल होगा और न ही आख़िरत (परलोक) में सफल होगा।

मुसलमान पुरूष और महिला के ऊपर अनिवार्य है कि वे माता-पिता के साथ संपूर्ण सद्व्यवहार करें, जितना संभव हो उनके साथ भलाई करें, उन्हें क्रोधित करने, उनका विरोध करने या उनके आदेशों का उल्लंधन करने और उनकी अवज्ञा करने से दूर रहें।

तथा प्रश्न संख्या : (35533

तीसरा :

अख़लाक़ (आचार व व्यवहार) को अच्छा बनाना (सुधारना) और उसको सभ्य बनान संभव है और उसके लिए निम्नलिखित साधनों को अपनाया जा सकता है :

● सद्व्यवहार और शिष्टाचार की विशेषताओं और गुणों तथा दुनिया और आख़िरत में उस पर निष्कर्षित होने वाले प्रतिफल और इनाम की जानकारी प्राप्त करना।

● दुर्व्यवहार व अनैतिकता की बुराइयों व खराबियों तथा उसपर निष्कर्षित होने वाले बदले और दुष्प्रभाव की जानकारी प्राप्त करना।

● पूर्वजों की जीवनियों और सदाचारियों के अहवाल को दृष्टि में रखना।

● क्रोध से बचना, धैर्य बनाये रखना तथा गंभीरता अपनाने और जल्दबाज़ी न करने का अभ्यास करना।

● अच्छे चरित्र वालों के साथ उठना-बैठना और बुरे चरित्र वालों के साथ उठने-बैठने से दूर रहना।

● अपने आपको शिष्टाचार पर प्रशिक्षण देना, उसका अभ्यास करना, उसका प्रयास करना तथा उस पर धीरज रखना। कवि कहता है (जिसका आशय है कि) : दानशीलता का प्रदर्शन करो ताकि तुम इसके अभ्यस्त हो जाओ, क्योंकि तुम दानशीलता का प्रदर्शन किए बिना किसी दानशील को नहीं पाओगे।

अंतिम बात यह है कि :

अल्लाह तआला से दुआ करनी चाहिए कि अल्लाह उसके व्यवहार को अच्छा कर दे और इस पर उसकी मदद फरमाए। जैसा कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम यह दुआ किया करते थे कि :

अल्लाहुम्मा अह्सन्ता ख़ल्क़ी, फ-अह्सिन ख़ुलुक़ी

(ऐ अल्लाह! तूने मुझे अच्छी तरह बनाया है, तो मेरे व्यवहार को भी अच्छा बना दे।) इस हदीस को अहमद (हदीस संख्या : 24392) नें रिवायत किया है, और “मुस्नद अहमद” के अन्वेषकों ने इसे सहीह क़रार दिया है। तथा शैख़ अल्बानी ने भी “सहीहुल जामेअ़” (हदीस संख्याः 1307) में इसे सहीह क़रार दिया है।

यदि किसी स्थिति में एक मुसलमान से भूल हो जाए और असका व्यवहार बुरा हो जाए, तो उसे माफी मांगने और दोष का सुधार करने में जल्दी करनी चाहिए, तथा अपने व्यवहार और आचार बेहतर बनाने का दृढ़ संकल्प करना चाहिए।

जब मुस्लिम व्यक्ति अपने व्यहार को संवारता है तो वह ऐसा अल्लाह तआला के आदेश के पालन में, उसकी प्रसन्नता चाहते हुए और अल्लाह के पैगंबर सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण करते हुए करता है, इस विषय में उसका मामला अन्य सभी इबादतों (उपासनाओं) की तरह ही होता है। अतः वह अपना व्यवहार और रवैया इसलिए बेहतर नहीं बनाता कि लोग उसकी सराहना करें। इस तरह तो वह उस पर मिलने वाले सवाब (पुण्य) को व्यर्थ कर देगा और वह इस दिखावे पर सज़ा (दंड) पाने का हक़दार होगा।

जिस तरह मुसलमान अपनी सभी इबादतों को केवल अल्लाह के लिए विशुद्ध करने का भरपूर प्रयास करता है, उसी तरह वह अपने व्यवहार और आचार को सुधारने में भी करता है। इस प्रकार वह सदैव अपनी दृष्टि के सामने अल्लाह के आदेश, हिसाब, मीज़ान (क़ियामत के दिन लोगों के कर्मों को तौलने के लिए लगाया जानेवाला तराज़ू), स्वर्ग और नरक को रखता है, और यह समझता है कि लोग उसे कदापि कोई लाभ नहीं देंगे और न ही कुछ नुक़सान पहुंचा सकते हैं।

अतः आख़िरत की याद अल्लाह तआला के लिए इख़्लास (निष्ठा) अपनाने में एक मुसलमान का महत्वपूर्ण सहयोगी है।

चौथा :

माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार और रवैया रखने में सहायक चीज़ों में से कुछ निम्नलिखित हैं :

● माता-पिता के अधिकारों और गुणों (प्रतिष्ठता एवं विशेषता) का ज्ञान, तथा यह जानना कि उन दोनों ने किस प्रकार अपने बच्चों का पालन-पोषण किया और उनके लिए सौभाग्य जीवन की आपूर्ति के लिए सभी कठिनाइयों का सहन किया।

● माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करने पर उभारने और उसके लिए प्रोत्साहित करने के संबंध में वर्णित धार्मिक पाठों का ज्ञान। इसी प्रकार उनकी अवज्ञा से डराने, तथा दुनिया व आख़िरत में उसके परिणाम और बदले के बारे में वर्णित पाठों का ज्ञान प्राप्त करना।

● इस बात का ज्ञान प्राप्त करना कि माता-पिता के साथ भलाई और अच्छा व्यवहार करना आज्ञाकारी बेटे के बेटों की तरफ से भलाई और अच्छा व्यवहार पाने के महान कारणों में से है, तथा माता-पिता की अवज्ञा करना अवज्ञाकारी बेटे के बेटों की तरफ से अवज्ञा पाने के महान कारणों में से है।

● पुनीत पूर्वजों के आचरण में विचार करना कि वे किस प्रकार अपने माता-फिता के साथ अचछा व्यवहार करते थे।

● माता-पिता के आज्ञापालन तथा उनकी अवज्ञा के बारे में बात करने वाली पुस्तकों तथा पत्रिकाओं को पढ़ना, साथ ही इस विषय से संबंधित धार्मिक भाषणों को सुनना।

● उपहार, अच्छे शब्द, हंसमुखता (प्रसन्नतापूर्ण चेहरा), बार-बार दुआ करना और अच्छी प्रशंसा करना सबसे महान कारणों में से हैं जो माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करने में सहायक हैं।

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत: साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर